Tuesday, December 21, 2010

कुछ भी लिख लो

"प्यार मोहब्बत लिख लो, देश मे फैले भ्रस्टाचार पे लिख लो, या फिर से कोई नया हंगामा खड़ा करना होतो किसी कि ऐसी तैसी वाला लेख लिख लो, हमे इससे मतलब नही कि तुम क्या लिखोगे, बस हमे लिख कर देदो, हमे बस उसे छपवाना है" सरपंच ने ओमी से कहा| ऐसे साहित्य के कदरदानो के कारण ही पिछ्ले साल भी ओमी का एक लेख शहर के अखबार मे छापा था| लेकिन उस लेख ( इंजिनियर क्यों लिखते है ) के कारण बहुत हंगामा हुआ था| ऐसे लेखक जिनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी, उन्होंने ओमी को बहुत कोसा था| उनमे से कुछ ने ओमी के लिखने पर आजीवन पाबन्दी की भी बात की थी| अब लेखक को लिखने नहीं देंगे, ये पाबन्दी तो नसबंदी से भी बुरी होगी| ऐसे इंजीनियर जिन्होंने अपने इम्तिहानो में भी कुछ नहीं लिखा था, लेखक बनने का सपना देखने लगे थे| कुछ ने तो ब्लॉग भी शुरू कर दिए और कुछ ने सच में एक-दो चीज़े भी लिख ली| लेकिन ये लिखते ही वो लेखक बन गए और उन्होंने ने भी ओमी कोसना शुरू कर दिया| ओमी को समझ में नहीं आरहा था की वो क्या लिखे|
प्यार मोहब्बत की बाते लिखने तो उसने कॉलेज के दिनों से छोड़ दी थी| जब उसकी प्रेम कविता नामक कविता पढने पर लोगो ने ये जानने के लिए उसे परेशान कर दिया था, कि ये कविता किसके लिए लिखी गयी थी| अगर कोई भी लेखक इतना सोच के लिखता तो कभी भी कोई बवाल नहीं होता| ओमी ने बस हिंदी के दो-चार शब्द उठाये जो मन में आया लिख दिया| उसे नहीं पता था की प्रेम कविता लिखने के लिए प्रेम करना भी जरुरी है| ज़माने की ये रीत भी अजीब है, वेद व्यास जी ने महाभारत लिखी उनसे किसी ने नहीं पूछा की आपने लड़ाई कब की थी| लेकिन अगर ओमी के प्यार मोह्हब्ब्त की बात कर दे, जो पीछे पड़ जाते है की "वो कौन थी"
ओमी ने सोचा क्यों देश के इतिहास पर ही कुछ लिख ले| लेकिन जिस देश का इतिहास सरकारों के साथ बदलता है, सरकारों के बदलने के साथ नया घटनाक्रम जुड़ जाता है, कुछ शहीदों को भुला दिया जाता है, तो कुछ वीरो को चोर बताया जाता है, वहाँ न जाने कब सच निकल जाये| अगर सच ऐसा हो जिससे किसी राजनैतिक दल को नुकसान होने का डर होतो गए काम से| नुकसान तो भी बड़ी बात है अगर किसी खाली और हारे हुए नेता ने पढ़ लिया तो बेवजह ही मुददा बनेगा | ओमी का कुछ बिगड़े न बिगड़े, उसका पुतला जरुर जलेगा| इतिहास से निराश होकर ओमी ने सोचा कि देश के भविष्य पर कुछ लिखे| क्यों न वो 2020 में देश कि तस्वीर का खाका रचे| ओमी ने बड़ी मेहनत करके जो लिखा | नेताओ की वर्तमान में जो सोच है, समझ है उससे तो वो 2050 का सपना लग रहा था| अब आज से चालीस साल बाद क्या होगा किसको पड़ी है? यहाँ तो लोगो को समझाओ कि अगर बारिश में पानी बहाया तो गर्मी में पानी नहीं मिलेगा| फिर भी उनके समझ में कुछ नहीं आता ऐसे में उन्हें चालीस साल की प्लानिंग कौन समझाए| ऐसे में तो वर्त्तमान कि घटनाओ पर ही कुछ लिखना बेहतर होगा|
ओमी ने सोचा क्यों न देश में फैले भ्रस्टाचार पर कुछ लिखे| CWG , 2G और न जाने ऐसे कितने इधर उधर के घटनाओ ने ये बता दिया था कि किस कदर अपनी ही थाली में छेड़ करने वाले जिम्मेदार नेता हमारे देश में है| ओमी ने सोचा ये चीज़े तो जगजाहिर है| रोज अखबारों में छपती है| लोग अखबारों में पढ़ते है और अपनी योग्यता के अनुसार नेताओ को गालिया भी देते है| कोई कमीने पर ही रुक जाता है तो कोई खानदान को भी नहीं छोड़ता| हमारे देश में ऐसे नेता अब उन छिछोरे लड़कों के तरह है जो स्कुल जाने वाले लडकियों को छेड़ते है| लडकियों को लगता है ये ज़िन्दगी का हिस्सा है, लड़किया भी अपनी योग्यता अनुसार लडको को गालिया देती है और स्कुल चली जाती है| अब ऐसे माहौल में वो क्या लिखे? अगर ओमी के लिखने से कोई हंगामा हो भी गया तो क्या होगा| नेता इस्तीफा दे देगा| इस्तीफा न हुआ गंगा का स्नान होगया| उनके सारे पाप धुल गए| अब उनसे गबन हुए पैसो के बारे में कोई नहीं पूछेगा| ओमी को आजतक समझ नहीं आया कि लोग इस्तीफा क्यों देते है पैसे क्यों वापस नहीं कर देते| तो ऐसे विषय पर लिखने से क्या फायदा वैसे ही बहुत बुद्धिजीवी है इस विषय पर विचार करने के लिए|
अब ओमी ने सोचा क्यों न बुधिजिवियो के बारे में भी कुछ लिख ले| वैसे ओमी को बुद्धिजीवी परजीवी लगते है, हमेशा दुसरो के द्वारा उत्पन्न कीये गए घटनाक्रमों पर जीने वाले लोग| यह एक ऐसा वर्ग है जो आजतक किसी के समझ में नहीं आया कि कैसे बनता है| इनके सोचने का तरीका बहुत आसान होता है| ये लोग पहले देखते है कि आम जनता क्या सोच रही है| बस अब उनकी सोच को गलत साबित करो, या उनके सोच से विपरीत बाते करो, या उन्हें समझो कि कि उनके सोचने से क्या मुसीबते आएँगी बस बन गए आप बुद्धिजीवी| उदाहरण के लिए जनता ने कहा बदला चाहिए आतंकवादियों को मार दो, इस वर्ग ने जनता को समझाने की कोशिश कि उन्हें जीने का हक़ है उन्हें जीने दो| जनता ने कहा अयोध्या का फैसला अच्छा है सब मिल बाट कर रहेंगे तो इन्होने कहा कि नहीं नहीं ये फैसला अच्छा नहीं है उसमे बहुत complications (उलझने) है| कश्मीर के हसीन वादिया हो या बस्तर का घना जंगल, ये हर जगह पहुच जाते है| सरकार के खिलाफ बोलते बोलते इन्हें पता ही नहीं चलता कि कब इन्होने देश के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है| इन्हें समझाने वाला अगर ताकतवर है ये तो वो रुढ़िवादी, और अगर समझाने वाला गरीब तो वो नासमझ| अब ऐसे में ओमी न तो ताकतवर था न गरीब तो उसे ये लोग क्या कहेंगे इसी डर से उसने सोचा कि इनके बारे में भी क्यों लिखे|
ओमी के अभी तक कुछ नहीं लिखा था| उसके सामने दो सवाल थे क्या लिखे और क्यों लिखे| क्या लिखे इसका कोई महत्व नहीं था, लेकिन क्यों का बड़ा ही महत्व था| सरपंच ने कहा था तो लिखना ही पड़ेगा| लेकिन ओमी की समझ में अभी भी नहीं आया है कि वो क्या लिखे, अगर किसी के पास कोई सलाह होतो ओमी को दे देवे|

यह लेख ब्लोग्शवर एवंम अनुभूति की प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी है

Monday, December 6, 2010

चाल चक्के वाली गाली

 "बाबा आज गाली लेके आना" जब भी मुरली शहर जाता अक्सर उसका पांच साल का बेटा विजय अपने बाबा से जिद किया करता था| आज भी मुरली शहर जारहा था, जैसे ही विजय को पता चला वो रोंने बिगड़ने लगा| "बाबा बोले थे लेके आऊंगा, अभी तक लाके नहीं दिए" विजय अपनी माँ से कह रहा था| उसे लगता था की अगर माँ भी उसका साथ देगी तो शायद तो बाबा गाड़ी लाके दे देंगे| तभी बाहर से आवाज़ आयी "मुरली भैया अगर तैयार होगये होतो चले"| ये आवाज़ ओमी के थी उसे भी शहर जाना था कुछ किताबे लेने, तो उसने सोचा मुरली को भी साथ ले चलेगा अपना साथ फटफटी पे| मुरली ने ओमी को आवाज़ दी "अंदर आ जाओ भैया चाय पिलो फ़िर निकलते है"| अंदर आने पे ओमी ने देखा तो विजय जमीन पर लेटे हुआ था| उसकी शकल पर रोने से आंसुओ के निशान बने हुए थे, बाल बिखरे हुए थे, और रोते रोते बस यही बोल रहा था"बाबा आज गाली लेके आना"| उसकी ये बाते सुन कर ओमी के चेहरे पे मुस्कान आगयी और उसने मुरली से पुछा" अरे भैय्या किस गाली की बात कर रहा है ये विजय| मुरली के बताने पर ओमी को समझ आया कि गाली नहीं गाड़ी चाहिए| ओमी ने विजय से कहा" कौनसी गाड़ी चाहिए, क्यों इतना रो रहे हो"| "चाल चक्के वाली" इतना सुनते ही ओमी हंस पड़ा और विजय से कहा" पहले बोलना तो सीख ले बाद में गाड़ी चलाना| उसके बाद ओमी ने विजय को समझाना चाहा कि वो अभी छोटा है अभी से गाड़ी चला के क्या करेगा| थोडा बड़ा होजये फ़िर वो उसे अपनी फटफटी चलाना सिखायेंगे|  विजय ने अपनी अकड़ में कहा "उसमे में तो दो चक्के होते है मुझे चाल चक्के वाली गाली चाहिए"| उसकी इस बात पर सब हंस पड़े|
मुरली कहने को तो किसान था लेकिन उसकी ज़मीन कहने भर को थी| अपने छोटे से खेत के साथ वो ओमी के खेतो पर भी काम करता था| ओमी अक्सर मुरली को अपने साथ शहर ले जाता था| शहर में राशन का सामान थोडा सस्ता मिलता था और उस दुकान में ओमी के पिताजी का खाता भी था| तो मुरली अक्सर ओमी के साथ जाकर घर के लिए सामान लाता था और बाद में उसकी मजदूरी से वो पैसे काट लिए जाते| इसके साथ वो कुछ अपनी खरीददारी भी कर आता| जो कहने को बस खरीददारी थी|
ओमी और मुरली जैसे ही सड़क पर आये पीछे से भाभी ने आवाज़ दी" ज़रा सुनो" | और घर से बाहर निकल कर आँगन में चली आयी| भाभी ने भैय्या से कहा "अपने लिए कपड़े भी ले लेना"| शायद वो ये बात धीरे से कहना चाहती थी लेकिन शायद उन्होंने धीरे से नहीं कहा या फ़िर ओमी के तेज कानो ने सुन लिया| पीछे से विजय अब भी चिल्ला रहा था "बाबा आज गाली लेके आना"|
शहर पहुंचते ही ओमी ने मुरली को राशन की दुकान पर छोड़ दिया और खुद किताबे लेने चला गया| ओमी के वापस आते तक मुरली अपनी खरीददारी कर लेता फ़िर ओमी वापस आने के बाद उसे अपने खाते में लिखवा देता| जब ओमी वापस आया तो देखा कि मुरली खिलौने वाले से कुछ बात कर रहा था| ओमी ने ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया| उसने मुरली के सामान कि कीमत पूछी और दुकान वाले से कहा कि उनके हिसाब में ही लिख दे | ओमी ने मुरली से पुछा और कही जाना है भैय्या? मुरली ने जैसे कुछ सुना नहीं| ओमी ने फ़िर से पुछा | इस बार मुरली ने जवाब दिया "नहीं चलो वापस चलते है"| मुरली का ये जवाब सुनकर ओमी ने उससे कहा"तुम्हे कुछ कपड़े भी तो लेने थे"
"लेने तो थे भैया, लेकिन नहीं लिया तो क्या होगा वैसे भी मजदूरी करने में कौनसे कपड़े लगते है| विजय बहुत दिनों से जिद कर रहा है तो मैंने उसके लिए खिलौना ले दिया| अब बचे पैसे में इस ज़माने कहा कपड़े मिलते है| विजय की माँ भी कई दिनों से कह रही थी की अपने लिए कपड़े लेलो| लेकिन वो समझ जाएगी, विजय तो बच्चा है वो कहा समझेगा|" जब मुरली ने ओमी से कहा तो ओमी कुछ देर तक शान्त ही रहा| कुछ देर बाद ओमी ने जेब से पैसे निकलते हुए कहा " ये पैसे रख लो, और चलो कपड़े भी ले लेते है" मुरली ने मन करते हुए ओमी से कहा की उसके हिसाब मे वैसे भी बहुत पैसे बाकी है वो और नही ले सकता | ओमी ने हसते हुए मुरली से कहा "तुम्हे कौन दे रहा है मैं तो गाडी के पैसे दे रहा हु और उसका हिसाब मैं विजय से देख लुंगा, तुम्हे इससे कोइ लेना देन नही"
जब मुरली घर पहुंचा तो उसी राह देख रही आँखों मे सवाल थे, क्या इन्होने कपड़े लिए? लेकिन वो कुछ कह पाती उससे पहले ही विजय ने पुछ लिया "गाली लाए" मुरली ने झोले से पहले कपड़े निकाल कर बाजु मे रखे और फिर विजय को उसकी गाडी निकाल कर दी| गाडी देख कर खुशी से विजय उछल पडा और ओमी से बोला "देखा मेली गाली मे चाल चक्के है और अपकी गाली मे दो"

Saturday, December 4, 2010

खौफ

(इस कहानी ने ब्लोग्शवर 6 की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली कहानी होने का ख़िताब जीता| )

चाँद की रौशनी और सड़क के किनारे लगे बल्ब कि आधी अधुरी रौशनी में उसे सड़क के किनारे अजीब सी परछाई दिख रह थी| भरत ने सुना भी था की यहाँ पर सर कटे हुए भूत रहते है शायद ये परछाई इन्ही की हो, इनमे से कोई उसे पकड़ ना ले उसे ये डर सता रहा था| उसके माथे से टपक रहा पसीना, धमनियों में लहू का प्रवाह और ह्रदय की तेज धडकनों से साफ़ था की वो बेहद डरा हुआ था| यह डर उसे आगे बढने से रोकने के लिए काफी था भरत ने कई बार पीछे लौटने की भी सोची लेकिन आज उसके वापस लौटने के कोई गुंजाईश नहीं थी|
और वापस लौट के गया भी तो वो कुत्ते फिर से वही होंगे| भरत अक्सर स्कुल जाते समय बाकी छात्रो का इंतज़ार करता था| गाव के आवारो कुत्ते से उसे इतना डर लगता था कि वो सोच भी नहीं सकता था कि कभी इस रास्ते से वो अकेले गुजरेगा वो भी रात के एक-दो बजे के आस पास| भरत जब घर से निकला तो उसे बिलकुल भी याद नहीं था कि उसे उसी रास्ते से गुजरना होगा| जब भरत मोड़ पर पहुंचा तो उसने देखा की कुत्ते कचरे के ठेर में अपना खाना खोज रहे थे| खाना खौजने के दौरान वो अक्सर एक दुसरे पर गुर्रा रहे थे और कभी एक दुसरे की मुह से खाना भी छीन रहे थे| भरत को लगा जैसे ये सारे उसे भी खा जायेंगे| उसने सोचा कि शायद वो तेज दौड़ कर भाग सकता है ताकी कुत्तो को पता चलने से पहले सी दुर निकल जायेगा या फ़िर चुपचाप धीरे धीरे निकल सकता है| उसने सोचा सड़क के दुसरे किनारे से धीरे धीरे जाना ही बेहतर है| सड़क के दुसरे किनारे से उसने धीरे धीरे आगे बढना शुरू किया| इस तरह चल रहे भरत की नज़र हमेशा कुत्तो पर ही टिकी हुई थी| कुत्तो के बीच हो रही लड़ाइयो को देख कर उसे बहुत डर लग रहा था| इतनी रात को उनके गुर्राने की आवाज़ बड़ी भयावह लग रही थी| कुछ दुर जाते ही एक कुत्ता उसे देख कर गुर्राया और जल्द ही सारे उसकी ओर देख कर भौकने लगे| उसकी टांगे कापनी लगी थी और बिना कुछ सोचे समझे उसने दौड़ना शुरू कर दिया| अपने बहुत पास कुत्ते कि भौकने कि आवाज़ सुन कर वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा| उसे एक पल के लिए ऐसे लगा जैसे ये कुत्ते उसे चीर फाड़ कर खाने वाले है| उनके मुह से टपक रही लार, बड़े बड़े दात, अँधेरे में और भी डरावने लग रहे थे| ज़मीन पर गिरे हुए भरत ने महसुस किया कि उसके हाथ के पास कुछ इटे पड़ी है उसने उन्हें उठा कर कुत्ते कि तरफ दो तीन इटे फेंकी| उसके इस प्रहार से कुत्ते डर कर भाग गए लेकिन भरत लेटा रहा उसे यकींन नहीं होरहा था कि वो चले गए| या शायद उसे समझ में नहीं आरही था कि वो क्या करे| आठ साल के बच्चे के लिए ये बहुत बड़ी घटना थी| उसे अभी और भी दुर जाना था| सांसे स्थिर होने के बाद भरत वहा से उठा और आगे बढ़ने लगा|

अब वो गाव के बाहर खेतो की ओर जाने वाली सड़क पर आगया था| नहर के ऊपर बने पुलिए को पार करना अब उसके लिए अगली चुनौती थी| चाँद की रौशनी और सड़क के किनारे लगे बल्ब कि आधी अधुरी रौशनी में उसे पुलिए के ऊपर अजीब सी परछाई दिख रह थी| भरत ने सुना भी था की यहाँ पर सर कटे हुए भूत रहते है शायद ये परछाई इन्ही की हो, इनमे से कोई उसे पकड़ ना ले उसे ये डर सता रहा था| उसके माथे से टपक रहा पसीना धमनियों में लहू का प्रवाह और ह्रदय की तेज धडकनों से साफ़ था की वो बेहद डरा हुआ था| यह डर उसे आगे बढने से रोकने के लिए काफी था भरत ने कई बार पीछे लौटने की भी सोची लेकिन आज उसके वापस लौटने के कोई गुंजाईश नहीं थी| पुलिए से गुजरना मतलब अपनी मौत को बुलाना था| भरत ने सोचा नीचे उतर कर वो नहर से होके जा सकता है वहा थोडा पानी होगा लेकिन कम से कम भूतो से तो बच जायेगा| रोड से नीचे उतर कर वो नहर पर करने के लिए आगे बढ़ा| इतना कम रौशनी में आगे बढ़ता हुआ भरत किसी चीज़ से टकरा कर नीचे गिर पड़ा| जहा पर वो गिरा था कुछ जानवरों की हड्डिया पड़ी हुई थी| उन हड्डियों को देख कर उसे यकींन होगया कि वहा सचमुच भुत रहते है, और ये हड्डिया उन्होंने ने ही फेंकी है| अब भरत बहुत डरा हुआ था| अगर किसी भुत ने उसे पकड़ लिया तो बाबा तक कैसे जायेगा| उसने अपने बाबा को भी कोसा कि उनका खेत पुलिए के उस पार क्यों है| काश इस पर ही होता तो अब तक वो वहा पहुँच चुका होता| लेकिन अब ये सब सोचने से क्या फायदा? वो नीचे नहर में उतर गया उसे लगा था कि पानी सिर्फ घुटनों तक होगा| लेकिन उसे नहीं पता था कि आज सुबह ही नहर में पानी छोड़ा गया था| नहर में उतरते ही उसने महसुस कि पानी उसके छाती तक आ चुका था| और पानी का बहाव भी थोडा तेज था| उसे लगा कि वो नहर पार कर सकता है लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका शरीर उस बहाव के सामने कुछ नहीं था| थोडा और आगे बढ़ते ही भरत पानी के साथ बह निकला, वो तो पुलिए के नीचे बहुत सारी लकड़िया थी जो भरत उनसे टकरा कर वही रुक गया| लेकिन उसे इस दौरान कुछ चोट भी आयी थी| उसकी किस्मत अच्छी थी जो नहर पुरी नहीं खोली गयी थी| पानी बहाव अगर और तेज होता तो शायद भरत को कोई नहीं बचा पता| लेकिन उसका डर और बड़ गया था क्युकि वो भूतो के और करीब आगया था| उसे डर लग रहा था कोई भुत उसे देख ना ले| साथ में उसे वहा से बाहर भी निकलना था| जैसे तैसे मशक्कत करके वो वहा से निकल पाया| बाहर निकला भरत खुद किसी भुत से काम नहीं लग रहा था| पुरी तरह कीचड़ में सना हुआ| नहर में हुए वाकये ने उसकी जान निकला दी थी| अब उसमे ताकत भी नहीं बची थी कि वो और आगे बढ पाए| तभी उसने ओमी चाचा को जाते देखा| उसने आवाज़ भी लगायी लेकिन ओमी ने जैसे कुछ सुना नहीं| ओमी आगे निकल गया| भरत अब रोने लगा था उसे समझ में नहीं आरहा था कि वो क्या करे| उसे लगा कि अब ओमी ही उसे बचा सकता था| रोता हुआ भरत ओमी की तरफ दौड़ने और आवाज़ देने लगा "ओमी चाचा"|

"ओमी चाचा " अँधेरे में ये आवाज़ सुनकर जब ओमी ने सायकल रोक कर आसपास देखा तो उसे अँधेरे की सिवा कुछ ना दिखा| ओमी लगा जैसे कोई भ्रम हो लेकिन फिर से जब आवाज़ आयी तो ओमी ने धयान दिया कोई बच्चा दौड़ता हुआ पास आरहा है| पास आने पर ओमी ने देखा ये तो भरत था, कीचड़ में सना हुआ, रोता हुआ| उसकी ये हालत देख कर ओमी भी घबरा गया| ओमी कुछ पुछता उससे पहले ही भारत ने कहा "दादी की तबियत ख़राब होगई है बाबा को बताने खेत जारहा था"| ओमी ने भरत को सायकल पर बैठाया और कहा पहले डॉक्टर को बुलाएँगे फिर बाबा को बताएँगे| रास्ते भर भरत ने ओमी को बताया कैसे अचानक दादी की तबियत बिगड़ने पर उसे बाबा को बुलाने के लिए निकलना पड़ा| अम्मा ने उसे भेजा था बाबा को बुलाने के लिए और बड़ी मुश्किलों के बाद यहाँ पहुंचा| उसने ये भी बताया की रास्ते में उसके साथ क्या क्या हुआ| डॉक्टर के घर जाने पर पहले उन लोगो ने भरत को नहलाया और उसकी मरहम पट्टी की | फ़िर डॉक्टर भरत की घर के ओर और भरत ओमी के साथ बाबा को बुलाने खेत गया| जब भरत ओमी और भरत के बाबा घर पहुंचे| तब तक डॉक्टर ने दवाई देकर दादी को सुला दिया था| अम्मा ने भरत को देखते ही गले से लगा लिया| भरत को नहीं पता आज उसने कितना बड़ा काम किया था| उसके जेहन में तो अभी वही डर था| 



यह कहानी ब्लोग्शवर एवंम अनुभूति की प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी है  

Thursday, October 7, 2010

कंचे

घुटने को ज़मीन पर टेक कर अर्जुन ने जमीन की उस हिस्से को फुंक मार कर साफ़ किया जहा वो अंगूठा रखने रखने वाला था| अर्जुन के अंगूठे को जमीन पर रखते ही बाकी सब लड़के थोडा और झुक गए और सबकी नज़र अर्जुन के हाथ पर टिक गयी | ऊँगली पर कंचा था, अंगूठे में जोर और आँखें  नरेश के कंचे पर थी| नरेश ने मन ही मन भगवान से प्राथना करनी शुरू कर दी| जैसे ही उसके दाहिने हाथ ने बाये हाथ की ऊँगली को छोड़ा एक आवाज़ आयी| ये आवाज़ कंचो के टकराने की थी| आवाज़ से साफ़ था की अर्जुन का निशाना बिलकुल सही जगह लगा है| कंचो के टकराने की यह आवाज़ जल्द ही बच्चो के शोर में बदल गयी| अर्जुन जीत गया! अर्जुन जीत गया!

आज तक अर्जुन से कोई जीता है जो नरेश जीत पाता! गाँव के सारे बच्चो को पता था की अर्जुन को हराना मुश्किल है लेकिन फिर भी कोई ना कोई उसे चुनौती दे ही देता था| फिर यह बच्चे स्कूल से भाग कर कंचे खेलते थे| आज भी ऐसा ही हुआ| अर्जुन खुश होकर अपने कंचे गिन रहा था और इस काम में उसकी मदद कर रहा था उसका दोस्त भरत| दोनों जीतने की ख़ुशी में मस्ती कर रहे थे की तभी किसी के जोर से आवाज़ दी "तुम दोनों फिर से भाग गए, आज अर्जुन तेरी खैर नहीं" सुनते ही अर्जुन बोला "बाबा!!"| बाबा ने कंचे खेलते देख लिया अब तो अर्जुन की शामत थी| डर के मरे अर्जुन से भागा भी नहीं गया| बंशी ने आते ही अर्जुन के गाल पर एक तमाचा दिया| "दिन भर कंचे, बस कंचे ही खेलेगा, स्कूल से भागेगा, और भागेगा" इसका साथ ही एक और तमाचा और पड़ा| इतना देखने के बाद भरत को लगा की शायद आज बंशी काका अर्जुन के साथ उसी भी पीटेंगे और उसने रोना शुरू कर दिया| उसे रोता देख बंशी ने कहा "तु क्यों रोता है चल भाग यहाँ से". ये सुनने के बाद भरत वहा से नौ दो ग्यारह होगया| बंशी ने अर्जुन का हाथ को खीच कर पकड़ा और खीच कर उसे घर लेजाने लगे| अर्जुन तो बच्चा था बंशी के तेज कदमो की बराबरी करने के लिए उसे दौड़ना पड रहा था| दौड़ने की वजह से अर्जुन के जेब से कुछ कंचे गिर गये| अर्जुन ने हाथ छुड़ा कर वो कंचे उठाने पीछे लौटा| बंशी के लिए कंचो का कोई महत्व नहीं था लेकिन अर्जुन के लिए वो उसकी जीत उसकी इज्जत शायद उसका सब कुछ था| ये देख कर बंशी आग बबुला होगया| "आज तेरे एक भी कंचे नहीं छोडूंगा " बंशी ने ये कहते हुए अर्जुन के हाथ से सारे कंचे छीन लिए| अर्जुन के जेब से भी कंचे निकाल लिए| अर्जुन मार खाने के बाद इतना नहीं रोया होगा जितना अब वो रोने लगा "हमारे कंचे हमे देदो!हमारे कंचे हमे देदो!" लेकिन बंशी ने उसकी बातो को अनसुना करके कंचो को सड़क के साथ साथ चल रही नहर में फेक दिया| 
"अरे क्या हुआ बंशी भैया" ओमी ने देखा कि बंशी अर्जुन को डांट डपटते ले जारहे थे| बंशी ने ओमी को बताया "क्या बताये ओमी भैय्या इसे तो समझा समझा के थक गए है, इतनी मन्नत करते तो मिट्टी की मुर्ति भी मान जाती लेकिन यह कि सुनता ही नहीं| आज फिर स्कूल से भाग कर कंचे खेल रहा था| आपसे तो कुछ छिपा नहीं है पेट काट कर पढ़ा रहे है इसे और यह कि सिवाय कंचो के कुछ देखता ही नहीं| सपने देख रहे है कि कॉलेज पढ़ाएंगे लेकिन भैया ये तो स्कूल खत्म करले वही बहुत लग रहा है " 
माँ अर्जुन को समझा रही थी| स्कूल से भाग कर कंचे खेलने क्यों गया? तुझे तो पता है ना बाबा को ये अच्छा नहीं लगता| "लेकिन कंचे नहर में क्यों फेके, सड़क में फेकना था ना मैं बाद में उठा लेता" जब अर्जुन ने यह कहा तो उसकी माँ को समझ नहीं आया कि यह उसकी बेशर्मी है या भोलापन| लेकिन माँ तो काम ही होता है बाप की बात बेटे को और बेटे की बात बाप को समझाना| माँ ने अर्जुन से कहा कि अभी परीक्षा तक कंचे मत खेल| "उसके बाद भी कहा से खेलेंगे बाबा ने तो पुरे कंचे नहर में फेक दिए| तुम्हे पता है वहा भुत रहते है अब पता नहीं मेरे कंचो के साथ भुत क्या करेंगे" अर्जुन ने माँ से कहा| माँ ने जैसे तैसे अर्जुन को समझा लिया कि वो परीक्षा तक कंचे नहीं खेलेगा और उसके बाद वो बाबा से कहेंगी उसके लिए नए कंचे लाने को|

अब स्कूल से भाग कर तो क्या स्कूल के बाद भी अर्जुन कंचे नहीं खेलता था| सारे लड़के कंचे खेलते और अर्जुन उन्हें देखता| अर्जुन को ना खेलते देख भरत ने भी खेलना छोड़ दिया| जब अर्जुन ने भरत से पूछा कि वो क्यों नहीं खेलता| तो उसने बहाना बना कर कहा" मेरी माँ ने भी मना किया है"| लडको ने अर्जुन को चिडाया भी लेकिन उसने माँ को वचन जो दिया था| भरत का मन तो बहुत किया लेकिन वो अर्जुन का दोस्त जो था| दोनों कि ज़िन्दगी में बस कंचे देखने कि चीज़ रह गयी थी|

अर्जुन और भरत लडको को खेलता देखा रहे थे| भरत से अर्जुन से कहा"आजकल ये नरेश बहुत उचकता है परीक्षा होने के बाद इसे बुरी तरह से हराना अर्जुन"| अर्जुन ने उसकी हा में हा मिलते हुआ कहा बस यार थोड़े दिन और रह गए है....." अर्जुन अपनी बात पुरी  कर पता इससे पहले उसके गाल पर एक भारी हाथ ने तमाचा जड़ दिया| इस अचानक तमाचे से अर्जुन हिल गया| यह तमाचा बंशी का था| "तुझे कितने बार समझाया है लेकिन तु फिर स्कूल से भागा" ....बंशी अपनी बात पुरी कर पता इससे पहले ही भरत ने डरते हुए कहा "काका हम तो बस देख रहे थे और हम भागे नहीं आज मास्टरजी ने जल्दी छुट्टी दे दी "| दोस्त को बेवजह मार खता देख शायद भरत में जोश आ गया कि वो बंशी काका के सामने जुबान खोले| "उस दिन के बाद से हम दोनों ने स्कूल से भागना छोड़ दिया और कंचे खेलना भी| हम तो परीक्षा के बाद ही खेलेंगे| अर्जुन ने काकी को वचन दिया है"

उसके बाद ना अर्जुन ने बाबा से बात की ना बाबा ने अर्जुन से बात करने कि कोशिश| सोने से पहले अर्जुन ने बाबा और माँ को कुछ खुसुर पुसुर करते सुना| सुबह भी कुछ खास नहीं थी| माँ से भी ज्यादा बात नहीं की और रोज की तरह स्कूल चला गया| स्कूल में भरत ने उसने कुछ कंचे दिए और कहा "काका मिले थे रस्ते में, वही दुकान से खरीद कर दिए है हम दोनों के लिए और कहा है स्कूल के बाद ही खेलना" 

Friday, September 17, 2010

दादाजी और जलेबी


"छोटू क्या खा रहा है" दादाजी ने अपने 7 साल के पोते से पूछा | पोते ने भरे हुए मुह से जवाब दिया " चोक्लेत".  दादाजी ने उसे बहलाते हुआ कहा की कौनसी पिपरमेंट है? छोटू गुस्सा होगया और बोला "पिपल्मेंत नहीं  चोक्लेत खाला हु"| दादाजी खीज गए| बूढ़े होने के बाद अगर इन्सान के हा में हा ना मिलायी जाये तो वो खीज जाते है| खीजने के बाद शुरू होता है बडबडाने का लम्बा सिलसिला| दादाजी भी बडबडाने लगे "पिपरमेंट नहीं चोकलेट, अभी ठीक से जबान भी निकली और लगा मुझे समझाने| आजकल के माँ बाप भी पता नहीं बच्चो को क्या क्या खिलाते है| बच्चे के लिए पैसा है, जोरू के लिए पैसा है लेकिन बाप के लिए कुछ नहीं| बस अपनी जवानी में जो खा लिया तो खा लिया इनके भरोसे तो भर पेट खाना मिल जाये वही बहुत है| अरे ओमी कहा जारहे हो"| 

अगर कोई बुज़ुर्ग रोक ले तो समझो लो अब उनके जीवन का सार, बदलते समाज और अपने भविष्य की बहुत सारे बाते सुनने को मिलेगी| वैसे काशी दादा ने हमे बहुत दिनों से बुलाया भी नहीं था, हमने भी सोचा की चलो अब यही सही| हमारी अपेक्षा के अनुसार काशी दादा ने हमसे पूछा कहा जा रहे हो ओमी बेटा| हमने हमारे अनुभव से सिखा है अगर कोई बुजुर्ग कहा जा रहे हो से बात शुरू करे तो समझलो बुढाऊ ने लम्बा प्लान बनाया है| यह सवाल पूछ के बस वो यह देखना चाहते है की सामने वाला कितनी जल्दी में है और कितना समय दे पायेगा| हमने काशी दादा को बताया की हम बाज़ार जारहे है| बाज़ार के बात सुनते ही जैसे उनको कुछ याद आगया और हमसे बोले "ओमी बेटा हमारा 1 काम कर दोगे, बाज़ार जारहे हो तो हमारे लिए जलेबी ला दोगे " हमे ये सौदा बुरा नहीं लगा यहाँ बैठ कर बेकार की बाते सुनते उससे अच्छा तो यही है| उम्र के साथ इन्सान का आत्म सम्मान और बड़ जाता है| दादा को भी यही हुआ उन्होंने अपने तकिये की नीचे रखे 10 रूपए निकाल कर हमे दिए| काशी दादा काम वाम तो कुछ करते थे नहीं थे और जितनी शिकायत उन्हें अपने बेटे से थी लगता तो नहीं की उसने पैसे दिए होंगे| हमे अजीब लगा की चाहे 10 रूपए ही सही लेकिन बुढ्ढे के पास पैसे आये कहा से? लेकिन सवाल ये नहीं था की उनके पास पैसे कहा से आये सवाल ये था की अब हम उन्हें कैसे समझाए की अब इतने पैसे में जलेबी नहीं मिलती| उन्हें समझाने की जगह हमने उनसे कहा "क्या बात कर रहे दादा आपसे भला जलेबी के पैसे लेंगे अरे बचपन में आपने इतना खिलाया है अब हम खिला देंगे जलेबी ही तो है कोई सोना चाँदी नहीं"| इतना सुनते ही काशी दादा ने आशीर्वादो के बरसात शुरू करदी| फिर हमारे माता पिता का गुणगान किया वाह कैसा सपुत पैदा किया है| लेकिन हमारे माता पिता को हम कभी सपुत लगे नहीं| फिर अपने कपूत को गालिया दी|  हम भी चल दिए बाज़ार की ओर|

रस्ते से जाते हुए शंकर को बुला कर काशी दादा ने पूछा "तुने ओमी को देखा क्या "| शंकर ने बताया की कुछ देर पहले दिखे थे शहर की तरफ जारहे थे शायद| ये सुन कर काशी दादा को यकीन आगया की ओमी गया तो जलेबी लेने ही है| बुढ्ढा मन एक बात से मान जाये ये तो मुश्किल है| उन्होंने छोटू से कहा की ओमी अभी तक आया नहीं| छोटू शायद बात सुनी ही नहीं या सुन कर अनसुनी करदी| वो तो अपने खेल में मस्त था| ये देख कर दादा और चिढ गए और बडबडाने लगे| "बिलकुल अपने बाप पर गया है| कोई कुछ पूछ रहा है ये नहीं की उसे कुछ बता दे|" अब दादा को कौन समझाए की छोटू इतना बड़ा नहीं हुआ है की उनकी बातो का जवाब दे| शायद दादा को ये बात मालूम थी लेकिन उन्हें तो बस बहाना चहिये बडबडाने का| उनका बडबडाना जारी रहा "हमे लगता था की पुरे गाव में कोई अगर अच्छा लड़का है तो ओमी है| लेकिन लगता है ओमी भी बाकीयो की तरह ही है| शायद बाकियो से बड़ कर| और होगा भी क्यों नहीं पढ़ा लिखा है अब बाकीयो से तो ज्यादा चालक होगा ही| गया है जलेबी लेने या पता भी नहीं गया भी या नहीं| हमसे झुट तो नहीं बोलेगा लेकिन अगर गया है तो आता क्यों नहीं "| बुडापा इन्सान के सब्र को बहुत काम कर देता है| काशी दादा से भी सब्र नहीं होरहा था| तभी छोटू ने उन्हें बताया ओमी काका आगये|

जब काशी दादा ने जलेबी की पुडिया खोली तब हमने देखा 1 पेपर जलेबी के रस से भीग गया था| आज हमे समझ में आया की जलेबी वाले क्यों जलेबी को 2 पेपरों में क्यों बांध कर देते है| उनकी आँखों में बच्चो जैसा लालच और उतावलापन था| अपनी कापती उंगलियों से जब उन्होंने जलेबी उठाई तो लगा जैसे उनके बरसो से अधूरी इच्छा किसी ने पुरी करदी है| अब तो दादा पुरी जलेबी युही साफ़ कर देंगे| लेकिन हमारी सोच के विपरीत उन्होंने वो जलेबी छोटू को बुला कर दी, और कहने लगे येले जलेबी खा और ये तेरी चोकलेट से भी मीठी है| तभी काशी दादा के बेटे किशोर भैया भी आगये| किशोर बेटा आ जलेबी खाले ये सुनते ही हमे अचरज हुआ की जिस बेटे को कितनी गालिया दी अब उसे ही जलेबी खिला रहे है| एक हम है जिसने जलेबी लाकर दी उसकी कोई कीमत ही नहीं| शायद बाप का मन ऐसा ही होता है जो बस बच्चो को गाली तो देता है लेकिन उनसे अपना मोह नहीं छोड़ पता| अब हमारी पारी आयी जब किशोर भैया के सामने उन्होंने हमारी जी भर के तारीफ की और हमे भी जलेबी दी| रस्ते से जाते हुए बबलू को भी बुला लिया| हमे लगा जैसे पुरे गाव को न्योता देंगे आज| हमे समझ में आया काशी दादा की ख़ुशी जलेबी खाने से कम और बाटने से ज्यादा थी| वो फिरसे अपने जवानी के दिनों में पहुच गए थे जब उनके बाज़ार से आते ही आसपास के सारे बच्चे जमा होजाते और काशी दादा उन सबको जलेबी खिलाते|  अब काशी दादा ने खुद जलेबी खायी उनकी आँखों की चमक से उनके जीभ पर घुलती जलेबी का जैसे मानो सीधा प्रसारण हो रहा था| उन्हें जलेबी बहुत अच्छी लगी इसका सबूत तो उनके चेहरे की मुस्कान थी| जब  हमने काशी दादा से कहा की अब हम जाते है| दादा हमे एक और जलेबी दी और बहुत सारा आशीर्वाद दिया, हमारे माता पिता की गुणगान किया वाह कैसा सपुत पैदा किया है| अपने बेटे को लताड़ा की उनके रहते गाव के दुसरे लड़के उन्हें जलेबी लाकर खिला रहे है| हमने जब किशोर भैया को देखा तो उनकी आखों में एक ख़ुशी थी अपने पिता को जलेबी खाते देखने की| फिर वहा से चल दिए अपने माता पिता को बताने की उन्होंने कैसा सपुत पैदा किया है| 

हम घर आकर बैठे ही थे की किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी  "अरे भैया काशी दादा चल बसे "

Wednesday, September 8, 2010

ओमी भैय्या की किताब

"ये तो हिंदी में लिखा है पहले क्यों नहीं बताया, मेरा पूरा समय बर्बाद कर दिया" फर्जी प्रकाशन के मालिक रसिकबिहारी ने हमसे बिगड़ कर कहा| बड़ी मुश्किलों के बाद उन्होंने मिलने का समय दिया था| अब ये मौका तो हम जाने देने वाले नहीं थे| हमने कहा "हिंदी भी तो भाषा है क्या हुआ जो हिंदी में है ". रसिकबिहारी चिढ गए और बोले "लिखो जिस भाषा में लिखना है लिखो लेकिन बिकेगी तो इंग्लिश की किताब ही और हमारे प्रकाशन से तो बिकने वाली ही किताब छपेगी". हमे समझ आ गया की अब जो आगे होगा वो हमारे लिए बहुत पीड़ादायक होगा| इसके बाद हमने उन्हें भारत की जनसख्या, जनसख्या में पढ़े लिखे लोग,, पढ़े लिखे लोगो में हिंदी जानने वाले, हिंदी जानने वालो में किताब खरीदने वाले के बारे कुछ मनगढ़त आकडे दिए| आकड़ो की सबसे अच्छी बात यही है उन्हें कोई भी कभी भी किसी भी उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकता है| हमारे द्वारा दिए गए आकड़ो से रसिकबिहारी मान गए| अरे मानते भी कैसे नहीं, आकड़ो से सरकारे मान जाती है, विपक्ष मान जाता है| आकड़ो की सच्चाई जानने का वक़्त होता किसके पास है?  
इसके बाद रसिकबिहारी ने हमसे पूछा की हम कहा से पढ़े है| हमने बताया स्कूल गाव से पढ़े और कॉलेज पास के शहर से| वो हँसते हुए बोले की अरे ओमी हमारे पूछने का मतलब है कौनसी संस्था से पढाई की है जैसे IIT या IIM या और कोई और बड़ी शिक्षण संस्था| ये तो बड़ी ही अजीब बात करदी IIM क्या चीज़ है ये तो हमारे पुरे गाव को नहीं पता और IIT के बारे में सिर्फ हमे पता है क्योंकी बड़के भैय्या ने वहा से MTech किया है| तो ऐसे किसी भी संस्था से पढने का सवाल ही नहीं उठता| रसिकबिहारी फिर से भड़क गए| हम पर गुस्सा करते हुए बोले की एक तो हिंदी में लिखते हो ऊपर से ना हीं IIT से हो ना IIM से तुम्हारी किताब खरीदेगा कौन? उन्होंने हमे और ज्ञान दिया की आजकल किताबे घर सजाने की चीज़ बन गयी है| जैसे लोग गुलदस्ता, टीवी, सोफा लेते है वैसे ही किताबे| घर में बड़ी बड़ी मोटी मोटी कथित बड़े लेखको की इंग्लिश किताबे रखना अब status symbol है| लेकिन IIT से तो इंजीनियर बनते है वो भला लेखक क्यों बनेंगे? हमारा यह विचार हमारे मस्तिस्क में ही रह गया, हमे पता था यही विचार आगे जाके भड़ास बनेगा, भड़ास निकालने  के लिए पूरा गाव पड़ा है लेकिन अभी हमे अपनी किताब की चिंता थी| 
इसके बाद हमने अपनी रणनीति बदल दी| "कॉलेज में पढने वाले छात्र तो कुछ पढ़ते होंगे ना " हमने रसिकबिहारी को समझाते हुए कहा| रसिकबिहारी बोले "हा पढ़ते है ना लेकिन वो भी इंग्लिश की किताबे पढ़ते है| GRE का नाम सुना है कभी, इसी के लिए वो किताबे पढ़ते है इधर GRE निकली उधार किताबे | और जो हिंदी की किताबे पढ़ते है वैसी किताबे तो तुम लिखोगे नहीं ". ये सुनते हमारे सम्मान को धक्का लगा| हमने उनसे पूछा आखिर ऐसा क्या पढ़ते है यह लोग? रसिक बिहारी ने हमे एक किताब दी और बोले पढो| किताब का नाम था "उस रात में जब घर पंहुचा तो वो फिर मेरे बिस्तर पर थी"| नाम और मुख पृष्ट पार छपी तस्वीरों को देख कर हम लज्ज्जित होगये| अपनी बची हुई इज्जत को उठा कर हम वहा से चल दिए|
फर्जी प्रकाशन के ऑफिस से अपने गाव तक सफ़र हमने बस लोगो को कोसते हुआ पूरा किया पहले प्रकाशन को, फिर इंग्लिश को, फिर IIT , IIM , GRE को, फिर सरकार पाकिस्तान चाइना अमेरिका को, और भी बहुतो को कोसा | अब  भगवान और किस्मत को कोसने की पारी  आ गयी थी 

Monday, September 6, 2010

इंजिनियर क्यों लिखते है?

"बचपन में जब खेलना कुदना चाहिए, तब ये लोग सुबह जल्दी उठकर, रातो को जग जग कर, मर मर के पड़ते है फिर बड़े होके इंजीनियर बनने के बाद, काम करने की जगह लिखना शुरू कर देते है| हमे यह नहीं समझ आता जब लिखना ही था तो कला क्षेत्र की पढाई करनी था ना तकनिकी की क्यों की?" हम अपनी भड़ास निकाल रहे थे| भड़ास किस बात की है ये बाद में बताएँगे (क्युकि अभी तक लिखा नहीं है)

बड़के भैया( हमारे मौसी के बड़े लड़के, बंगलौर में इंजीनियर है किसी विदेशी कम्पनी में) हमे समझाते हुए बोले ओमी ऐसे बिगड़ने से क्या होगा तुम कोशिश करते रहो कुछ ना कुछ होजायेगा| अरे क्या खाक होगा इंजीनियर को अपना काम करना चाहिए और लेखक को अपना क्या जरुरत है ब्लॉग, किताब या कविताये लिखने की| अब आप ही बताओ क्या आपने कॉलेज में मोटी मोटी किताबे कविताये या उपन्यास लिखने के लिए की थी| हमे भड़कता देखे बड़के भैय्या बोले तुम्हे गुस्सा नहीं सहानुभूति होनी चाहिए|

इंजीनियर बचपन से पड़ता है इस उम्मीद में एक दिन काम करेगा लेकिन जब काम करने का समय आता है तब और भी बहुत कुछ आ जाता है अब जैसे कोई सरकारी कार्यालय में है बड़ी बड़ी फाइल है लेकिन लिखता कौन है? क्लर्क वो भी पैसे लेके और अगर इंजीनियर उस फाइल में कुछ फेरबदल करना चाहे भी तो कर नहीं सकता| किसी इंजीनियर को ना लिखने की कीमत मिल जाती है और किसी को धमकी| अब बेचारा इंजीनियर लिखे कहा? जो कोई सोचे कार्यालय से बाहर निकाल कर हो रहे कामो को ही देख ले| तो पहले तो छोटे, मोटे, पतले या दुबले बाबु उन्हें बाहर निकलने नहीं देते, जो बाहर निकाल आये भी तो गुंडे, बदमाश, नेता, ठेकेदार उन्हें काम की जगह पर पहुचने नहीं देते और जो एक्का दुक्का पहुच भी जाते है तो बेचारे वापस नहीं आते| अब इन सबसे तो अच्छा ही है की वो कुछ लिख ही ले| भ्रस्टाचार के खिलाफ लिख के(चाहे उसे कोई पड़े ना पड़े) इन्सान की भड़ास तो काम हो जी जाती है इसीलिए यह इंजीनियर भी लिख लेते है

बड़के भैय्या ठीक है सरकारी तो लिख ले लेकिन आपके जैसे बड़ी बड़ी विदेशी कम्पनी में काम करने वाले इंजीनियर अरे वो तो ऑफिस में बैठके, ऑफिस के कंप्यूटर से ब्लॉग लिखते रहते है
उन्हें क्या जरुरत है लिखने की?

अरे ओमी उन्हें तो सबसे ज्यादा जरुरत है कम्पनी ज्वाइन करते ही वो बेचारे सोचते है की कोडिंग करेंगे, लेकिन कोडिंग के नाम पर उन्हें मिलते है वही पुराने कोड जिसे वो बस थोडा बहुत बदल देते है| कुछ तो बस अपना नाम चस्पा कर देते है कोड में बिना किसी फेरबदल के| अपना समय निकलने के लिए उनमे से कुछ CAT की परीक्षा दे देके समय बिता देते है, कुछ CAT की coaching देने वाली संस्थाओ के चक्कर लगाकर समय बिताते है, और कुछ के लिए तो यह विचार की CAT देना है या नहीं ही बहुत होता है समय बिताने के लिए| कुछ खुशनसीब जो मेहनत और किस्मत से कोड को छूने वाले होते है, उन्हें उनके ऑफिस के होने छोटी, मोटी, अर्जेंट, weekly, monthly , long या short मीटिंग काम करने नहीं देती| तुम नहीं समझोगे ओमी भैया सब मन कसोट के रह जाते है| इसीलिए यह बेचारे अपने उस कंप्यूटर पर जिसपर काम करना चहिये था, ब्लॉग लिखना शुरू कर देते है

बड़के भैय्या की बाते सुन कर हमे अपने ही शत्रु से सहानुभूति होने लगी| अब वक़्त और हालत ने हमे लेखक इंजीनियर के मन की उद्वेलना से परिचित करा दिया| हमारी भड़ास भी कम होगई थी, और मन भी हल्का होगया| अपने शत्रु की दयनीय अवस्था देख कर खुश होना मनुष्य का स्वाभाव है|

(भड़ास किस बात की थी यह बाद में बतायंगे अभी तो सारे इंजीनियरों के लिए दुआ मांगिये की उन्हें ज्यादा और अच्छा काम मिले)

Sunday, September 5, 2010

गेहू का गोदाम

हमारे गाव में एक गेहू का गोदाम है| गोदाम की जमीन तो बहुत  बड़ी है लेकिन नजाने गोदाम उतना बड़ा नहीं बनाया गया| गोदाम इतना छोटा क्यों बना इसके पीछे कई कहानिया और कई सच है| क्या कहानी और क्या सच यह तो इश्वर ही जनता है| लोग कहते थे की सरकारी कार्यालयों में तो गोदाम भी बहुत बड़ा है लेकिन गाव आते आते छोटा हो गया | जो छोटा मोटा गोदाम गाव पंहुचा उसे गाव के जिम्मेदार लोगो ने और छोटा कर दिया| लेकिन गोदाम के छोटा होने से गाव के बच्चे बड़े खुश थे, क्युकि बाकी बची जगह क्रिकेट के लिए बड़ी ही उपयोगी थी| 
गोदाम के आसपास की जगह गेहू तौलने के काम आती थी| ऐसा हम नहीं गोदाम वाले कहते थे हमने तो बस वहा क्रिकेट खेलते ही देखा था| जो ज्यादा पूछा तो कह देते "गेहू उगाते कितना हो जो गोदाम बड़ा चाहिए"| बात तो यह भी ठीक थी क्युकि अच्छी फसल के लिए बारिश समय से चाहिए, बारिश हुई तो अच्छे बीज चहिये, बीज मिले तो खाद चाहिए और खाद मिल गयी तो भगवान का आशीर्वाद चहिये| लेकिन इस साल हमारे गाव के किसानो ने नजाने क्या करामत की, गेहू की फसल बहुत अच्छी हुई| लेकिन अब फसल अच्छी हुई तो सरकार के पास पैसे नहीं थे खरीदने के लिए| ज्यादा फसल उगा के भी उतने ही पैसे क्युकि अब गेहू का मूल्य जो कम होगया| इस मेहनत का फायदा क्या? हमारे गाव के किसानो के पास सरकार पार दबाव बनाने का भी समय नहीं था| जितनी देर से फसल बिकेगी उतना ही ज्यादा ब्याज देना होगा| किसानो ने गेहू बेचा, पैसे लिए, कर्ज चुकाए, कपडे लिए, बच्चो को के लिए बड़े बड़े सपने देखे फिर उनके जरूरते पूरी करने की कोशिश की| यहाँ तक पहुचते पहुचते कुछ के पैसे खत्म होगये और जिनके बचे उन्होंने थोड़ी और जरुरत पूरी कर दी अपने बच्चो की| 
जितना गेहू गोदाम में आया उतना रखवा दिया और बाकी गोदाम के बाहर सड़क पार| हमने जाकर जब कहा सड़क पे क्यों रखा है तो बोले अभी गाड़ी आएगी उठा के लेजायेगी| हमे सब पता था गोदाम में काम करने वालो को क्रिकेट खेलने की जगह चाहिए थी इसीलिए उन्होंने सड़क में फेकवा दिया|  हमने जो ज्यादा बोला तो हमे समझाया गया| "ओमी भैय्या गेहू का क्या हर साल होता है और नहीं भी होता है तो इतना बड़ा देश है कही ना तो होगा| जो मानलो जो देश में ना भी हुआ तो वर्ल्ड बैंक से पैसा उधार लेके अमेरिका से खरीद लेंगे| अरे अमेरिका तो हमारे देश के लिए अलग से गेहू उगाता है जो हम सस्ते दामो में खरीद सके| कभी कभी तो गेहू के साथ कुछ अन्य पौधे जैसे गाजरघास भी फ्री में मिल जाते है  और फिर भी तुम्हे चिंता लगी पड़ी है गेहू की| अब क्रिकेट को देखो 1983 में वर्ल्ड कप जीते थे तबसे जीते भी नहीं,और कोई देश हमे कप जीत के तो देगा नहीं और सिर्फ 11 खिलाडी में ही कितना जोर लगयोगे| अगर गाव के बच्चे क्रिकेट खेलेंगे तो यह भी खिलाडी बनेंगे और हमारा देश वर्ल्ड कप जीतेगा " अब तुम्ही सोचो गेहू ज्यादा महत्वपूर्ण है या क्रिकेट|
अब गाव के जिम्मेदार लोग क्रिकेट के चिंता कर रहे थे और हमे चिंता थी कि सड़क पड़ा गेहू ख़राब ना होजाये| शायद एक बड़े संत को यह बात पहले से पता थी इसीलिए तो कह गए "प्रभु इतना दीजिये जामे कुटुंब समाये ..". क्युकि प्रभु ने अगर ज्यादा दिया भी तो, उसे तो सड़क पर ही ख़राब होना है|

Friday, September 3, 2010

अपराधियों की प्रतियोगिता

कलयुग है और कलयुग में कुछ भी हो सकता है| ऐसे ही एक कलयुगी घटना घटी हमारे पड़ोस के गाव में घटी| पड़ोस के गाव में रखी गयी अपराधियों की प्रतियोगिता| सुना था अपराध करना बुरा है, पाप है लेकिन अब तो अपराधियों को सामाजिक स्वीकार्यता मिल चुकी है| अपराधी ही हमारे विधायक और सांसद है| पुलिस वाले भी खुद को पीछे कैसे रखे वो अभी अपराधी बनने लगे है| अब ऐसे  दौर में ये प्रतियोगिता इतनी अजीब बात भी नहीं थी| खैर इस अपराध की काली छाया हमारे गाव में अभी उतनी बड़ी नहीं हुई थी| पुरे गाव में एक ही गुंडा था| कलयुग का प्रताप समझो की यह गुंडा भी हमारे गाव के सम्मानित व्यक्ति मास्टरजी का बेटा था| गाव वालो ने तय किया की मास्टरजी के बेटे रामचरण को ही हमारे गाव के तरफ से इस प्रतियोगिता में भेजा जाये|

पुरे गाव के सामने सर उठा कर चलने वाले मास्टरजी इतने सारे लोगो को आता देखा घबरा गए| उन्हें अंदाज़ा होगया की फिर से रामचरण ने कुछ गड़बड़ की है| इससे पहले की हम कुछ कहे रामचरण अंदर से बाहर निकला| उसे देख कर हम दर गए और एक  कदम पीछे हटे| भागवान बुरा करे पीछे वालो को जो पीछे हटने की जगह अपने जगह पर खड़े रहे और उल्टा हमे आगे धकेल दिया|  हम अपनी पुरानी जगह से आगे गए और रामचरन के और पास|  इतने पास की वोह आसानी से हमारा तेटूवा दबा सकता था| रामचरण में हमे देख कर बोला "काहे बे ओमी ये क्या नौटंकी लाये हो साले उल्टा लटका के इतना मारेंगे की तुम्हारी tight jeans भी ढीली होके पजामा और कुरता दोनों बन जाएगी "| ये शायद पहली बार था जब मास्टरजी अपने बेटे की गुंडागर्दी देख रहे थे| जिस आदमी ने ना जाने कितनो बच्चो के भविष्य बनाये आज वो अपने ही बेटे का बर्बाद वर्तमान देख रहे थे| हमने हिम्मत करके कहा "पड़ोस के गाव में अपराधियों की प्रतियोगिता होरही है और हमारे गाव के सबसे बड़े गुंडे लुच्चे और कमीने तो रामचरण ही है| गाव वाले सोच रहे है की आप ही इस प्रतियोगिता में जाये और गाव को जीत दिलाये "| अपने बेटे का चरित्र चित्रण सुन कर मास्टरजी रोते हुए घर के अंदर चले गए| बाप के आंसू और बेइज्जती ने तो अच्छो अच्छो को बदल दिया है| रामचरण किस खेत की मुली थे| पहली बार रामचरण ने देखा उसके कर्मो के कारन उसके पिताजी में क्या बीत रही थी| "पगला गए हो ओमी भैय्या" इस बार रामचरन क आवाज़ में अपनी ताकत का अभिमान नहीं था| रामचरण रुवासा होके बोले "कैसी बात कर रहे हो, ऐसी प्रतियोगिता में भेज रहे हो जिसमे गाव जीत के बदनाम होजायेगा| आप सभी गाव वालो से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगते है| ये समझ लो की लड़कपन की गलती होगई, आज के बाद यह सब बंद| अरे इस प्रतियोगिता में क्या भाग लेना और जितना| खेल कूद में जीतो, पड़ाई लिखाई में जीतो "

अब प्रतियोगिता कोई भी गाव जीते, हमारे गाव को तो इनाम पहले ही मिल गया था| रामचरण सुधर गए अब और क्या चहिये था| लेकिन रामचरण ने हमारे लिए मुसीबत करदी| इस प्रतियोगिता में जीतने के बाद होने वाली बदनामी के कारन गाव वालो ने सोचा की इसी प्रतियोगिता में ऐसे इन्सान को भेजे जो हार जाये| "पुरे गाव में ओमी भैय्या से सीधा और सच्चा और कोई नहीं है" रामचरण हमारे कंधे पार हाथ रख बोले| उल्टा लटकाने से लेकर हमारे चरित्र चित्रण का ये सफ़र बड़ा ही अजीब था| अब वक़्त और हालत ने हमे ही प्रतियोगी बना दिया अब गाव की इज्जत हमारे हाथ में थी| बस अपना रथ (सायकल) लेकर निकल पड़े अपना कर्म करने के लिए|

Thursday, September 2, 2010

किस्सा tight jeans का

3 -4 महिनो पहले खरीदी हुइ jeans अब tight होने लगी थी|  हम ठहरे गाँव के गवार, tight jeans से परेशान हो गए थे| सोचा इस समस्या का समाधान शायद पंच के पास हो | पंच ने कहा हमे तो कुछ नहीं पता सरपंच से पूछते है | फिर क्या था सरपंच ने विधायक से पूछा, विधायक ने सांसद से पूछा, सांसद ने प्रधानमंत्री पूछा और प्रधान मंत्री ने मदमजी से पूछा | मदमजी ने अपने खासम खासो से पूछा | एक आम आदमी की छोटी सी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है यह देख कर हमे दुःख हुआ | लेकिन हम कर भी क्या सकते थे | हमे अपनी  tight jeans की फिकर हो रही थी | पंच ने हमे बताया की हमारी समस्या को सरकार ने बड़े ही संजीदे तरीके से लिया और इसका हल निकालने के लिए एक सयुंक्त जाँच कमिटी का गठन किया है | इस बात को सुनकर हमे बड़ी ख़ुशी हुई | पंच साहेब ने बताया की कमिटी की रिपोर्ट ३ महीनो में आ जाएगी | 
३ महीने, तब तक हम  tight jeans से काम चलाते रहे | गाव वाले कभी हमे सचिन सचिन चिड़ाने लगे थे | जैसे तैसे ३ महीने बिताये लेकिन उसके बाद में भी जब कुछ नहीं हुआ तो हम फिर से  पंच के शरण  में पहुच गए | पंच हमे सरपंच के पास ले गए, सरपंच विधायक के पास, विधायक सांसद के पास | सांसद तो हमे देखते ही भड़क उठे | 
उन्होंने बताया की रिपोर्ट तो १ महीने में ही आ गयी थी लेकिन सरकार पर दबाव है | रिपोर्ट अब आने में टाइम लगेगा १-२ साल के बाद ही रिपोर्ट आएगी | सांसद ने समझाया सरकार को डर है इस रिपोर्ट के आने के बाद कही jeans बनाने वाली कम्पनियों को प्रॉब्लम ना हो जाये | अगर उन्हें कुछ हुआ तो पार्टी को अगले चुनाव के लिए चंदा नहीं मिलेगा | विपक्ष भी इस मौके को छोड़ेगा नहीं | वैसे भी जब पिछले चुनाव में उन्हें इन कम्पनियों ने चंदा नहीं दिया था, विपक्ष वाले तभी से इंतज़ार में है की कुछ मुद्दा मिले और पुरे jeans कारोबार पर ताला जड़ दे | बात यही तक होती तो भी हम लोग निपट लेते इस रिपोर्ट का असर तो अमेरिका से होने वाली संधि पर भी पड़ेगा | अमेरिका चाहता है की भारत में वहा के धागे से ही  jeans बने | अब जब कम्पनी ही नहीं होगी तो धागे कहा से आयेंगे| 
इतना सुनते ही पंच और सरपंच परेशान हो गए | अगर हमारी tight jeans  की बात अमेरिका तक पहुच गयी और उसे पता चल गया की उसके धागे की धंधे में हमारी वजह से रुक गया तो हमसे बदला लेने पुरे गाव पे मिसाइल गिरा देगा | सरपंच ने हमारे पाँव पकड़ लिए और बोले ओमी भैया लगे तो हमारी धोती पहन लो लेकिन अब इस tight jeans की बात को जाने दो | अब वक़्त और हालत ने हमे पुरे गाव का तारणहार बना दिया | हमने भी अपने निजी हितो को त्याग करके अपनी jeans को आग लागा दी और धोती अपना ली | धोती पहनने का एक और फायदा है यह कभी tight नहीं होती |

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