Wednesday, September 8, 2010

ओमी भैय्या की किताब

"ये तो हिंदी में लिखा है पहले क्यों नहीं बताया, मेरा पूरा समय बर्बाद कर दिया" फर्जी प्रकाशन के मालिक रसिकबिहारी ने हमसे बिगड़ कर कहा| बड़ी मुश्किलों के बाद उन्होंने मिलने का समय दिया था| अब ये मौका तो हम जाने देने वाले नहीं थे| हमने कहा "हिंदी भी तो भाषा है क्या हुआ जो हिंदी में है ". रसिकबिहारी चिढ गए और बोले "लिखो जिस भाषा में लिखना है लिखो लेकिन बिकेगी तो इंग्लिश की किताब ही और हमारे प्रकाशन से तो बिकने वाली ही किताब छपेगी". हमे समझ आ गया की अब जो आगे होगा वो हमारे लिए बहुत पीड़ादायक होगा| इसके बाद हमने उन्हें भारत की जनसख्या, जनसख्या में पढ़े लिखे लोग,, पढ़े लिखे लोगो में हिंदी जानने वाले, हिंदी जानने वालो में किताब खरीदने वाले के बारे कुछ मनगढ़त आकडे दिए| आकड़ो की सबसे अच्छी बात यही है उन्हें कोई भी कभी भी किसी भी उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकता है| हमारे द्वारा दिए गए आकड़ो से रसिकबिहारी मान गए| अरे मानते भी कैसे नहीं, आकड़ो से सरकारे मान जाती है, विपक्ष मान जाता है| आकड़ो की सच्चाई जानने का वक़्त होता किसके पास है?  
इसके बाद रसिकबिहारी ने हमसे पूछा की हम कहा से पढ़े है| हमने बताया स्कूल गाव से पढ़े और कॉलेज पास के शहर से| वो हँसते हुए बोले की अरे ओमी हमारे पूछने का मतलब है कौनसी संस्था से पढाई की है जैसे IIT या IIM या और कोई और बड़ी शिक्षण संस्था| ये तो बड़ी ही अजीब बात करदी IIM क्या चीज़ है ये तो हमारे पुरे गाव को नहीं पता और IIT के बारे में सिर्फ हमे पता है क्योंकी बड़के भैय्या ने वहा से MTech किया है| तो ऐसे किसी भी संस्था से पढने का सवाल ही नहीं उठता| रसिकबिहारी फिर से भड़क गए| हम पर गुस्सा करते हुए बोले की एक तो हिंदी में लिखते हो ऊपर से ना हीं IIT से हो ना IIM से तुम्हारी किताब खरीदेगा कौन? उन्होंने हमे और ज्ञान दिया की आजकल किताबे घर सजाने की चीज़ बन गयी है| जैसे लोग गुलदस्ता, टीवी, सोफा लेते है वैसे ही किताबे| घर में बड़ी बड़ी मोटी मोटी कथित बड़े लेखको की इंग्लिश किताबे रखना अब status symbol है| लेकिन IIT से तो इंजीनियर बनते है वो भला लेखक क्यों बनेंगे? हमारा यह विचार हमारे मस्तिस्क में ही रह गया, हमे पता था यही विचार आगे जाके भड़ास बनेगा, भड़ास निकालने  के लिए पूरा गाव पड़ा है लेकिन अभी हमे अपनी किताब की चिंता थी| 
इसके बाद हमने अपनी रणनीति बदल दी| "कॉलेज में पढने वाले छात्र तो कुछ पढ़ते होंगे ना " हमने रसिकबिहारी को समझाते हुए कहा| रसिकबिहारी बोले "हा पढ़ते है ना लेकिन वो भी इंग्लिश की किताबे पढ़ते है| GRE का नाम सुना है कभी, इसी के लिए वो किताबे पढ़ते है इधर GRE निकली उधार किताबे | और जो हिंदी की किताबे पढ़ते है वैसी किताबे तो तुम लिखोगे नहीं ". ये सुनते हमारे सम्मान को धक्का लगा| हमने उनसे पूछा आखिर ऐसा क्या पढ़ते है यह लोग? रसिक बिहारी ने हमे एक किताब दी और बोले पढो| किताब का नाम था "उस रात में जब घर पंहुचा तो वो फिर मेरे बिस्तर पर थी"| नाम और मुख पृष्ट पार छपी तस्वीरों को देख कर हम लज्ज्जित होगये| अपनी बची हुई इज्जत को उठा कर हम वहा से चल दिए|
फर्जी प्रकाशन के ऑफिस से अपने गाव तक सफ़र हमने बस लोगो को कोसते हुआ पूरा किया पहले प्रकाशन को, फिर इंग्लिश को, फिर IIT , IIM , GRE को, फिर सरकार पाकिस्तान चाइना अमेरिका को, और भी बहुतो को कोसा | अब  भगवान और किस्मत को कोसने की पारी  आ गयी थी 

1 comment:

  1. अति उत्तम........ऐसे ही लिखते रहो..... एक दिन आपकी किताब जरूर छपेगी!!!!

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