Monday, December 6, 2010

चाल चक्के वाली गाली

 "बाबा आज गाली लेके आना" जब भी मुरली शहर जाता अक्सर उसका पांच साल का बेटा विजय अपने बाबा से जिद किया करता था| आज भी मुरली शहर जारहा था, जैसे ही विजय को पता चला वो रोंने बिगड़ने लगा| "बाबा बोले थे लेके आऊंगा, अभी तक लाके नहीं दिए" विजय अपनी माँ से कह रहा था| उसे लगता था की अगर माँ भी उसका साथ देगी तो शायद तो बाबा गाड़ी लाके दे देंगे| तभी बाहर से आवाज़ आयी "मुरली भैया अगर तैयार होगये होतो चले"| ये आवाज़ ओमी के थी उसे भी शहर जाना था कुछ किताबे लेने, तो उसने सोचा मुरली को भी साथ ले चलेगा अपना साथ फटफटी पे| मुरली ने ओमी को आवाज़ दी "अंदर आ जाओ भैया चाय पिलो फ़िर निकलते है"| अंदर आने पे ओमी ने देखा तो विजय जमीन पर लेटे हुआ था| उसकी शकल पर रोने से आंसुओ के निशान बने हुए थे, बाल बिखरे हुए थे, और रोते रोते बस यही बोल रहा था"बाबा आज गाली लेके आना"| उसकी ये बाते सुन कर ओमी के चेहरे पे मुस्कान आगयी और उसने मुरली से पुछा" अरे भैय्या किस गाली की बात कर रहा है ये विजय| मुरली के बताने पर ओमी को समझ आया कि गाली नहीं गाड़ी चाहिए| ओमी ने विजय से कहा" कौनसी गाड़ी चाहिए, क्यों इतना रो रहे हो"| "चाल चक्के वाली" इतना सुनते ही ओमी हंस पड़ा और विजय से कहा" पहले बोलना तो सीख ले बाद में गाड़ी चलाना| उसके बाद ओमी ने विजय को समझाना चाहा कि वो अभी छोटा है अभी से गाड़ी चला के क्या करेगा| थोडा बड़ा होजये फ़िर वो उसे अपनी फटफटी चलाना सिखायेंगे|  विजय ने अपनी अकड़ में कहा "उसमे में तो दो चक्के होते है मुझे चाल चक्के वाली गाली चाहिए"| उसकी इस बात पर सब हंस पड़े|
मुरली कहने को तो किसान था लेकिन उसकी ज़मीन कहने भर को थी| अपने छोटे से खेत के साथ वो ओमी के खेतो पर भी काम करता था| ओमी अक्सर मुरली को अपने साथ शहर ले जाता था| शहर में राशन का सामान थोडा सस्ता मिलता था और उस दुकान में ओमी के पिताजी का खाता भी था| तो मुरली अक्सर ओमी के साथ जाकर घर के लिए सामान लाता था और बाद में उसकी मजदूरी से वो पैसे काट लिए जाते| इसके साथ वो कुछ अपनी खरीददारी भी कर आता| जो कहने को बस खरीददारी थी|
ओमी और मुरली जैसे ही सड़क पर आये पीछे से भाभी ने आवाज़ दी" ज़रा सुनो" | और घर से बाहर निकल कर आँगन में चली आयी| भाभी ने भैय्या से कहा "अपने लिए कपड़े भी ले लेना"| शायद वो ये बात धीरे से कहना चाहती थी लेकिन शायद उन्होंने धीरे से नहीं कहा या फ़िर ओमी के तेज कानो ने सुन लिया| पीछे से विजय अब भी चिल्ला रहा था "बाबा आज गाली लेके आना"|
शहर पहुंचते ही ओमी ने मुरली को राशन की दुकान पर छोड़ दिया और खुद किताबे लेने चला गया| ओमी के वापस आते तक मुरली अपनी खरीददारी कर लेता फ़िर ओमी वापस आने के बाद उसे अपने खाते में लिखवा देता| जब ओमी वापस आया तो देखा कि मुरली खिलौने वाले से कुछ बात कर रहा था| ओमी ने ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया| उसने मुरली के सामान कि कीमत पूछी और दुकान वाले से कहा कि उनके हिसाब में ही लिख दे | ओमी ने मुरली से पुछा और कही जाना है भैय्या? मुरली ने जैसे कुछ सुना नहीं| ओमी ने फ़िर से पुछा | इस बार मुरली ने जवाब दिया "नहीं चलो वापस चलते है"| मुरली का ये जवाब सुनकर ओमी ने उससे कहा"तुम्हे कुछ कपड़े भी तो लेने थे"
"लेने तो थे भैया, लेकिन नहीं लिया तो क्या होगा वैसे भी मजदूरी करने में कौनसे कपड़े लगते है| विजय बहुत दिनों से जिद कर रहा है तो मैंने उसके लिए खिलौना ले दिया| अब बचे पैसे में इस ज़माने कहा कपड़े मिलते है| विजय की माँ भी कई दिनों से कह रही थी की अपने लिए कपड़े लेलो| लेकिन वो समझ जाएगी, विजय तो बच्चा है वो कहा समझेगा|" जब मुरली ने ओमी से कहा तो ओमी कुछ देर तक शान्त ही रहा| कुछ देर बाद ओमी ने जेब से पैसे निकलते हुए कहा " ये पैसे रख लो, और चलो कपड़े भी ले लेते है" मुरली ने मन करते हुए ओमी से कहा की उसके हिसाब मे वैसे भी बहुत पैसे बाकी है वो और नही ले सकता | ओमी ने हसते हुए मुरली से कहा "तुम्हे कौन दे रहा है मैं तो गाडी के पैसे दे रहा हु और उसका हिसाब मैं विजय से देख लुंगा, तुम्हे इससे कोइ लेना देन नही"
जब मुरली घर पहुंचा तो उसी राह देख रही आँखों मे सवाल थे, क्या इन्होने कपड़े लिए? लेकिन वो कुछ कह पाती उससे पहले ही विजय ने पुछ लिया "गाली लाए" मुरली ने झोले से पहले कपड़े निकाल कर बाजु मे रखे और फिर विजय को उसकी गाडी निकाल कर दी| गाडी देख कर खुशी से विजय उछल पडा और ओमी से बोला "देखा मेली गाली मे चाल चक्के है और अपकी गाली मे दो"

No comments:

Post a Comment

Related Posts with Thumbnails